Lok Adalat : क्या है लोक अदालत

Lok Adalat:- हम सब जानते हैं कि मार्च का महीना को फाइनेंस का आखरी महीना कहा जाता है ऐसे में हर सरकारी या प्राइवेट फाइनेंस कंपनी को अपना अपना पूरा बजट दिखाना पड़ता है सरकार को।इसलिए वर्ष की अंत में लगती है लोक अदालत।

लीगल नोटिस

हम सभी कहीं ना कहीं से किसी न किसी कंपनी से प्राइवेट या सरकारी से लोन लेते हैं जब किसी कारण बस उस लोन को चुकाने में हम असफल हो जाते हैं या फिर अवधि के दौरान पैसा नहीं लौटा पाते हैं तो आखरी में हमें कंपनी नोटिस भेजती है सिविल कोर्ट के माध्यम से जिस को लीगल नोटिस कहा जाता है।

राइट्स

अगर आप किसी कंपनी से लोन लेकर उसका पैसा नहीं चुका पाए हैं अवधि के दौरान और आप यह सोच रहे हैं कि कंपनी क्या कर लेगी या फिर आप सोच रहे हैं कि लोन माफ हो गया है या माफ करवा लेंगे तो आप बिल्कुल गलत सोच रहे हैं।

क्योंकि बीते वर्ष 2020 से देश दुनिया भर में लगे लॉकडाउन के कारण ज्यादातर मामला लोन विभाग का फंसा हुआ है जिसमें लोगों का व्यापार खराब हुआ है और जिनका लोन चुकता नहीं हो पाया है और समय बीत गई है तो कंपनी लीगल नोटिस करती है।

कस्टमर के पक्ष में होता है लोक अदालत

जैसे ही लोगों को लीगल नोटिस मिलता है तो लोग घबरा जाते हैं कि क्या करें उस समय आपको जिस समय पर सिविल कोर्ट में आपको बुलाया गया है उस समय आप बिल्कुल सिविल कोर्ट में जाएं क्योंकि वहां जितने भी आपके यहां कंपनी का पैसा बाकी है उसमें आपको ज्यादातर छूट मिलती है।

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जो जज होते हैं सिविल कोर्ट के वह कंपनी और कस्टमर दोनों के बीच का फैसला करती है जिसमें दोनों पक्ष की मंजूरी होनी चाहिए और आपके लोन का समझौता यानी निवारण हो जाता है।

All India Civil Court

लोक अदालत Lok Adalat लोगों का अधिकार भी

अगर आपका मामला ज्यादा पेचीदा हो गया है तो आपका भी राइट्स है कि आप लोक अदालत में जा सकते हैं मगर कंपनी की मंजूरी होनी चाहिए । अगर आप कोई केस कंपनी के लोक अदालत में ले जाना चाहते हैं और कंपनी नहीं चाहती है।

तो आप कुछ नहीं कर सकते हैं। क्योंकि जितने अधिकार आपको है उतने अधिकार कंपनी को भी है अगर कंपनी चाहेगी तो पूरे के पूरा बकाया राशि आप से वसूल सकती है यह भी उस कंपनी का अधिकार है।

सिविल कोर्ट का मतलब है समझौता

अगर आप का मामला अदालत में चला गया है इसका मतलब है कि कंपनी समझौता करना चाहती है जितना आप सक्षम है लोन के बकाया राशि देने में जिसमें बीच का फैसला करती है लोक अदालत।

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